Changes

कह-मुकरियाँ / अमीर खुसरो

235 bytes added, 07:01, 16 नवम्बर 2009
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’ ना, सखि! दिया(दीपक)  21.राह चलत मोरा अंचरा गहे।मेरी सुने न अपनी कहेना कुछ मोसे झगडा-टंटाऐ सखि साजन ना सखि कांटा! 
</poem>
750
edits