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09:19, 16 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अमीर खुसरो
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{{KKCatKavita}}<poem>
आ घिर आई दई मारी घटा कारी। बन बोलन लागे मोर दैया री
बन बोलन लगे मोर। रिम-झिम रिम-झिम बरसन लागी छाय री चहुँ ओर।
आज बन बोलन लगे मोर। कोयल बोल डार-डार पर पपीहा मचाए शोर।
ऐसे समय साजन परदेस गए बिरहन छोर।
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