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आशा / रामधारी सिंह "दिनकर"
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08:10, 21 नवम्बर 2009
::(२)
मर गया होता कभी का
::आपदाओं की कठिनतम मार से,
यदि नहीं आशा श्रवण में
::नित्य यह संदेश देती प्यार से--
::"घूँट यह पी लो कि संकट जा रहा है।
::आज से अच्छा दिवस कल आ रहा है"।
</poem>
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