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मैं फँस गया हूँ / अश्वघोष

1 byte added, 10:54, 21 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अश्वघोष
|संग्रह=जेबों में डर / अश्वघोष
}}[[Category:गज़ल]]<poem>
मैं फ़ँस गया हूँ अबके ऐसे बबाल में
फँसती है जैसे मछली, कछुए के जाल में।
उस आदमी से पूछो रोटी के फ़लसफ़े को
जो ढूँढता है रोटी पेड़ो की छाल मेंमें।
रूहों को कत्ल करके क़ातिल फ़रार है
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