[[Category:गज़ल]]
<poem>
मैं फ़ँस फँस गया हूँ अबके ऐसे बबाल में
फँसती है जैसे मछली, कछुए के जाल में।
उस आदमी से पूछो रोटी के फ़लसफ़े को
जो ढूँढता है रोटी पेड़ो पेड़ों की छाल में।
रूहों को कत्ल क़त्ल करके क़ातिल फ़रार है
ज़िन्दा है गाँव तब से मुर्दों के हाल में।
जो गन्दगी से उपर जन-मन को खुश करेख़ुश करें
ऐसे कमल ही रोपिए संसद के ताल में।