{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर"
|संग्रह=रसवन्ती / रामधारी सिंह "दिनकर"
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गीत, अगीत, कौन सुंदर है?
(1) ::गाकर गीत विरह की तटिनी ::वेगवती बहती जाती है, ::दिल हलका कर लेने को ::उपलों से कुछ कहती जाती है। ::तट पर एक गुलाब सोचता, ::"देते स्वर यदि मुझे विधाता, ::अपने पतझर के सपनों का ::मैं भी जग को गीत सुनाता।" ::::गा-गाकर बह रही निर्झरी, ::::पाटल मूक खड़ा तट पर है। ::::गीत, अगीत, कौन सुंदर है? (2) ::बैठा शुक उस घनी डाल पर ::जो खोंते पर छाया देती। ::पंख फुला नीचे खोंते में ::शुकी बैठ अंडे है सेती। ::गाता शुक जब किरण वसंती ::छूती अंग पर्ण से छनकर। ::किंतु, शुकी के गीत उमड़कर ::रह जाते स्नेह में सनकर। ::::गूँज रहा शुक का स्वर वन में, ::::फूला मग्न शुकी का पर है। ::::गीत, अगीत, कौन सुंदर है? (3) ::दो प्रंमे प्रेमी हैं यहाँ, एक जब ::बड़े साँझ आल्हा गाता है, ::पहला स्वर उसकी राधा को ::घर से यहाँ खींच लाता है। ::चोरी-चोरी खड़ी नीम की ::छाया में छिपकर में सुनती है, ::'हुई न क्यों मैं कड़ी गीत की ::बिधना', यों मन में गुनती है। ::::वह गाता, पर किसी वेग से ::::फूल रहा इसका अंतर है। ::::गीत, अगीत, कौन सुन्दर है?</poem>