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सुनो-2 / अशोक वाजपेयी
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22:03, 22 नवम्बर 2009
::सुनो अब भी सूखी टहनियों पर
::चमकता है वह हलका आलोक-जल
::
अब भी ठहरा हुआ है
::
उत्सव-स्पर्श वह
::
सुनो अगर शस्य की
::
प्रतीक्षा विफल थी
::
तो क्या-
'''रचनाकाल : 1959'''
</poem>
अनिल जनविजय
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