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02:29, 24 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>जब तुम बाहर से लौटते हो
और देख लेते हो एकबार फिर घर
जब तुम अंदर से बाहर जाते हो
और खुली हवा से अधिक खुली होती तुम्हारी श्वास
अंदर बाहर के किसी सतह पर होते जब
डरती हूँ
डरती हूँ जब अकेले होते हो
जब होते हो भीड़
जब होते हो बाप
जब होते हो पति आप
सबसे अधिक डरती हूँ
जब देखती तुम्हारी आँखो में
बढ़ते हुए डर का एक हिस्सा
मेरी अपनी तस्वीर।
</poem>