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अस्वीकरण
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तिर्याक़ / फ़राज़
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14:02, 24 नवम्बर 2009
अब मेरे किए मलूल<ref>चिंतित</ref>थी तू
कहने को वो ज़िंदगी का लम्हा<ref>
क्षण
</ref>
पैमाने-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref> से कम नहीं था
माज़ी <ref>अतीत</ref> की तवील<ref>लंबी</ref> तल्ख़ियों<ref>कड़वाहटों </ref> का!
द्विजेन्द्र द्विज
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