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वह प्यार - 3 / लाल्टू

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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>तुम्हारा न होना मेरा अपना न होना है
जीता हूं सुख से फिर भी क्योंकि
ठंडी हवा है तुम्हारे होने की संभावना लिए
आज तो एक चांद भी है तुम सा
सच कहता यह जो अंधेरा चांद से यहां तक फैला है
वह तुम्हारे बाल हैं
अंधेरे को उंगलियों से छूता हूं बार – बार
जानता हूं दूर किसी गांव में
मुड़ – मुड़ कर चूम रही होगी
मेरी उंगलियों को तुम
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