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मैं / लाल्टू

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{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=
}}<poem>कितना छिपा
कितना उजागर
इसी उलझन में मग्न।

कुछ यह
कुछ वह
हर किसी को चाहिए
एक अंश मेरा

कुछ उदास
कुछ सुहास
कुछ बीता
कुछ अभी आसन्न।

सच
मैं
वही अराजक
तुम्हारी कामना
वही अबंध
तुम्हारा ढूँढना

कुछ सुंदर
कुछ असुंदर
कुछ वही संक्रमण लग्न।
</poem>
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