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14:28, 26 नवम्बर 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=गिरधर गोपाल
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<poem>
हेमन्ती भोर एक जादू की पुड़िया है।
सागर के फेन से बना हुआ बदन इस का,
जंगल की चकित-भ्रमित हरिणी का मन इस का
यह तो एक सोती-जागती हुई गुड़िया है।
कोहरे की झील बीच नाव-सा नगर डोले
दरपन-सा घर डोले काँच की डगर डोले,
धूल है कि छोड़ गई उर्वशी चुनरिया है।
ताल औ' तलैया हैं जल रहीं अँगीठी-सी
नदी है कि ठहर गई एक नज़र मीठी-सी
घाट-घाट साज रही रूप की नज़रिया है।
जादू की पुड़िया है-
हेमन्ती भोर एक जादू की पुड़िया है।
</poem>