|रचनाकार=ठाकुरप्रसाद सिंह
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह
}}{{KKCatGeet}}<poem>यह बादल की पहली बूंद बूँद कि यह वर्षा का पहला चुम्बनस्मृतियों के शीतल झोकों में झुककर कांप काँप उठा मेरा मन।
बरगद की गंभीर बांहों गभीर बाँहों से बादल आ आंगन आँगन पर छाएझांक झाँक रहा जिनसे मटमैला थका चांद पत्तियां चाँद पत्तियाँ हटाएनीची-ऊंची ऊँची खपरैलों के पार शांत शान्त वन की गलियों में
रह-रह कर लाचार पपीहा थकन घोल देता है उन्मन
::यह वर्षा का पहला चुम्बन।
पिछवारे की बंसवारी बँसवारी में फंसा फँसा हवा का हलका अंचलखिंच-खिंच पडते बांस बाँस कि रह-रह बज-बज उठते पत्ते चंचलचरनी पर बांधे बाँधे बैलों की तडपन तड़पन बन घण्टियां घण्टियाँ बज रहींयह ऊमस उमस से भरी रात यह हांफ हाँफ रहा छोटा-सा आंगनआँगन::यह वर्षा का पहला चुम्बन।
इसी समय चीरता तमस की लहरें छाया धुंधला धुँधला कुहरा,यह वर्षा का प्रथम स्वप्न धंस धँस गया थकन में मन की, गहरा
गहन घनों की भरी भीड मन में खुल गए मृदंगों के स्वर
एक रूपहली बूंद बूँद छा गई बन मन पर सतरंगा स्पन्दन::यह वर्षा का पहला चुम्बन।
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