|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
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'''(रोज़ी वट्टा के लिए)
एक अरसा बीत गया
लापरवाह अपने चारों ओर से
ढूँढ रही हो ज्यों मुझे भोर से
प्रेम में मेरे डूबी थी ऐसे
कभी वह आती थी उदास, कँपकँपाती हुई
खामोश ख़ामोश रहती थी, बात नहीं करती थी
कभी घर-भर में या बाहर कभी लान में
चक्कर काटती रहती थी मौन
उसकी याद आती है
'''(1984 में रचित)
</poem>