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:::(२)
इतने में आया हँस बसन्त, मिट्टी को चूमा--खिला फूल!
थल का बुलबुला फूल जैसे, हँसता समीर में झूल झूल!
 
जिस मिट्टी से जीवन पाया, वह उस मिट्टी को गया भूल,
थल का बुलबुला फूल जैसे, हँसता समीर में झूल झूल?
 
देखा जो तारों को, सोचा--मैं भी उड़ जाऊँ बहुत दूर,
है जहाँ जल रहा नीलम के मंदिर में वह कर्पूर चूर!’
 
तितली को देखा और कहा--’मुझको दे दो दो चटुल पंख’;
मैना आई तो उससे भी उड़ने को माँगे चटुल पंख!
 
</poem>
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