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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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भारत के सब प्रसिद्ध तीर्थों से, नगरों से

है आज आ रही माँग तपोमय गाँधी की

अंतिम धूनी से राख हमें भी चुटकी भर

मिल जाए जिससे उसे सराएँ ले जाकर

पावन करते

निकटस्‍थ नदी,

नद, सर, सागर।


अपने तन पर अधिकार समझते थे सब दिन

वे भारत की मिट्टी, भारत के पानी का,

जो लोग चाहते थे ले जाएँ राख आज,

है ठीक वही जसिको चाहे सारा समाज,

संबद्ध जगह जो हो गाँधी जी की मिट्टी से

साधना करे

रखने को उनकी

किर्ति-लाज


हे देश-जाति के दीवानों के चूड़ामणि,

इस चिर यौवनमय, सुंदर, पावन वसुंधरा

की सेवा में मनुहार सहज करते करते

दी तुमने अपनी उमर गँवा, दी देह त्‍याग;

अब राख तुम्‍हारी आर्यभूमि की भरे माँग,

हो अमर तुम्‍हें खो

इस तपस्‍व‍िनी

का सुहाग।
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