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हाले-मजबूरिए-दिल की निगरां ठहरी है / हसरत मोहानी
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08:33, 5 दिसम्बर 2009
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
हाले-
मज़बूरिए
मजबूरिए
-दिल<ref >दिल की मजबूरी की हालत</ref> की निगराँ<ref >देखने वाली</ref> ठहरी है
देखना वह निगहे-नाज़ कहाँ ठहरी है
गंगाराम
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