तेहिं के कारज शकल शुभ,सि़द्व करें हनुमान ।।
जय हनुमंत संत हितकारी, । सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।।।जन के काज विलंब न कीजै, । आतुर दौरि महा सुख दीजै ।।।जैसे कूदि सिंधु महि पारा,। सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।।आगे जाय लंकिनी रोका, । मारेहुं लात गई सुरलाका ।।।जाय विभीषण को सुख दीन्हा,। सीता निरखि परम पद लीन्हा ।।बाग उजारि सिंधु महं बोरा । अति आतुर जमकातर तोरा ।।अक्षयकुमार को मारि संहारा । लूम लपेटि लंक को जारा ।।लाह समान लंक जरि गई । जय जय धुनि सुरपुर नभ भई ।।अब बिलंब केहि कारन स्वामी । कृपा करहु उर अंतरयामी ।।जय जय लखन प्रान के दाता । आतुर ह्वबै दुख करहु निपाता ।।जै हनुमान जयति बलसागर ।सुर समूह समरथ भटनागर ।।
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