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मन रुई का / शांति सुमन

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नया पृष्ठ: पड़ी औंधी नाव <br> रेतों को पसीना छूटता है ।<br> इस सी में कहाँ कोई<br> घर …
पड़ी औंधी नाव <br>
रेतों को पसीना छूटता है ।<br>
इस सी में कहाँ कोई<br>
घर हमारा पूछता है ।<br>
<br>

दस्तकें देती हवा<br>
ठहरी हुई चौगान पर<br>
मन हमारा भी ढहा है<br>
कुछ इसी अरमान पर<br>
<br>
देख भाई कांच का सपना <br>
कहाँ से टूटता है ?<br>

पहन सारी चुप्पियाँ<br>
घिरने लगे हैं फूल<br>
बिना कुछ भी बताए<br>
झरने लगे हैं फूल<br>

धुने जाने के लिए ही<br>
मन रुई का फूटता है ।<br>
<br>
शिराओं में बज रहे जो<br>
रात-दिन के शंख<br>
देखते बच्चे क़िताबों में<br>
बया के पंख<br>

कौन ये हसते हुए-<br>
सुख का खज़ाना लूटता है?<br>
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