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|रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा
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ऐसे हैं सुख सपन हमारे
 
बन बन कर मिट जाते जैसे
 
बालू के घर नदी किनारे
 
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
 
लहरें आतीं, बह-बह जातीं
 
रेखाए बस रह-रह जातीं
 
जाते पल को कौन पुकारे
 
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
 
ऐसी इन सपनों की माया
 
जल पर जैसे चांद की छाया
 
चांद किसी के हाथ न आया
 
चाहे जितना हाथ पसारे
 
ऐसे हैं सुख सपन हमारे....
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