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पानी बसंत पतझर / शांति सुमन
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10:10, 8 दिसम्बर 2009
}}
<poem>
अरी
जि़ंदगी
ज़िंदगी
पानी में तू
बना रही घर है
बाहर-बाहर है बसंत,
Shrddha
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