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धूम है अपनी पारसाई की / अल्ताफ़ हुसैन हाली
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14:48, 8 दिसम्बर 2009
क्यों बढ़ाते हो इख़्तलात बहुत
हमको ताक़त नहीं जुदाई की
मुँह कहाँ तक छुपाओगे हमसे
द्विजेन्द्र द्विज
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