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|रचनाकार=हरे प्रकाश उपाध्याय
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नदी में तैरते हुए सोचता हूँ
 
पानी नदी के बारे में क्या जानता है
 
नदी से पूछता हूँ
 
तुम पानी की हो या मेरी
 
नदी कोई जवाब नहीं देती
 
वह हवा की और इशारा करती है
 
धूप से आँख-मिचौली खेलती हवा के बारे
 
हम क्या जानते हैं ?
 
कोई किसी के बारे में क्या जानता है
 
एक स्त्री जो रोज़ चूल्हा जलाती है
 
आग के बारे में क्या जानती है
 
आग ही आग के बारे में क्या जानती है
 
मैं उदास हूँ तो मित्र
 
तुम भी उदास हो जाते हो
 
मेरी उदासी में
 
किसकी हँसी शामिल है
 
तुम क्या जानते हो ?
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