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क्या हुआ हुस्न है हमसफ़र या नहीं / ख़ुमार बाराबंकवी
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14:17, 12 दिसम्बर 2009
<poem>
क्या हुआ हुस्न
हमसफ़र
है
हमसफ़र
या नहीं
इश्क
इश्क़
मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं
छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
है नदामत मुझे
तुझसे शिकवा नहीं
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'
द्विजेन्द्र द्विज
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