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<poem>
क्या हुआ हुस्न हमसफ़र है हमसफ़र या नहीं इश्क इश्क़ मंज़िल ही मंज़िल है रस्ता नहीं
ग़म छुपाने से छुप जाए ऐसा नहीं
छोड़ भी दे अब मेरा साथ ऐ ज़िन्दगी
है नदामत मुझे तुझसे शिकवा नहीं
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'ख़ुमार'