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यह आवाज / माखनलाल चतुर्वेदी
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09:26, 16 दिसम्बर 2009
:कुछ आये बवन्डर
:थरथराए कुछ बदन
:कुछ गिर गये घर
,
:कुछ अँधेरा बढ़ा
:दृग छाई अँधेरी
:कुछ कलेजा कँपा
:पथ में लगी देरी
,
किन्तु सहसा टूट कर
,
पानी हुआ अभिमान उनका,
और मस्ती से हरा ऊगा धरा पर आज तिनका।
मैं बड़ों का पतन चित्रित कर उठा,
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