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चांद तन्हा है आसमां तन्हा / मीना कुमारी
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02:30, 17 दिसम्बर 2009
'दोनों चलते रहें कहाँ तन्हा' इस मिसरे में 'कहाँ' क़ाफ़िया है और 'तन्हा' रदीफ़
ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं,
ज़िस्म
जिस्म
तन्हा है और जाँ तन्हा
हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी,
दोनों चलते रहें
तन्हा-
कहाँ
तन्हा
जलती-बुझती-सी रोशनी के परे,
सिमटा-सिमटा-सा एक मकाँ तन्हा
राह देखा करेगा
सदियॊं
सदियों
तक छोड़
जाएंगे
जाएँगे
ये जहाँ तन्हा।
द्विजेन्द्र द्विज
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