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कसौटी / जयशंकर प्रसाद

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|संग्रह=झरना / जयशंकर प्रसाद
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तिरस्कार कालिमा कलित हैं,
 
अविश्वास-सी पिच्छल हैं।
 
कौन कसौटी पर ठहरेगा?
 
किसमें प्रचुर मनोबल है?
 
तपा चुके हो विरह वह्नि में,
 
काम जँचाने का न इसे।
 
शुद्ध सुवर्ण हृदय है प्रियतम!
 
तुमको शंका केवल है॥
 
बिका हुआ है जीवन धन यह
 
कब का तेरे हाथो मे।
 
बिना मूल्य का , हैं अमूल्य यह
 
ले लो इसे, नही छल हैं।
 
कृपा कटाक्ष अलम् हैं केवल,
 
कोरदार या कोमल हो।
 
कट जावे तो सुख पावेगा,
 
बार-बार यह विह्वल हैं॥
 
सौदा कर लो बात मान लो,
 
फिर पीछे पछता लेना।
 
खरी वस्तु हैं, कहीं न इसमें
 
बाल बराबर भी बल हैं ॥
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