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13:51, 20 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
ज्ञानियों से लगता है डर
डर गुणी जनों से लगता है
अनुभवी जनों से लगता है डर।
ज्ञान, गुण, अनुभव के बिना
जिया गया जीवन निरर्थक नहीं है फिर भी।
डर का घर कि यह जीवन
ज्ञान, गुण, अनुभव के बिना भी
सार्थक है।
ज्ञानियों से डरने के लिए
डरने के लिए गुणी जनों से
अनुभवी जनों से डरने के लिए
ज्ञान, गुण, अनुभव से हीन जीवन ज़रूरी है।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>