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13:58, 20 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हिरन पर आई हुई है
बाघिन की तबियत
कबूतर मादा बाज़ पर फ़िदा है।
मौत और मुहब्बत के इस खेल में
शामिल नहीं है शब्द
कविता शामिल नहीं है
मनुष्य शामिल होने की तैयारी कर रहा है
शायद।
खेल को और ...और
दिलचस्प बना देने के लिए
मनुष्य का शामिल होना ज़रूरी है.
उसमें।
रचनाकाल : 1991, विदिशा
</poem>