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दिल्ली में / शलभ श्रीराम सिंह

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|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
कारों की रेस में
शामिल बैलगाड़ियाँ
ख़ुश है घोड़ागाड़ियों को देख कर
सभ्यता का विकास बरकरार है यहाँ
सर के ऊपर से गुज़रते हवाई जहाजों के
बावजूद।

चेहरे या तो बेरंग है
या फिर बदले हुए
मुलाक़ातें मुलाक़ातों की तरह नहीं है
प्रेमिकाएँ तक झूठ बोलती है यहाँ
दोस्त कहे जाने वाले लोग भी।

प्यार और दोस्ती के लिए
झूठ जरूरी है दिल्ली में
जमुना के बे-सेहत पानी की तरह
</poem>