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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ मैं / शलभ श्रीराम सिंह
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<poem>
मुआवज़ा लेकर
गाँव छोड़ देने को तैयार हैं लोग
देश छोड़ देंगे मुआवज़ा लेकर एक दिन।

गाँव और देश को इस तरह बेचने वाले लोग
कहाँ से आ गए हैं
हमारी दुनिया में?

कहाँ से आ गए हैं
गाँव और देश के ख़रीददार
माँ और माटी के इन सौदागरों को
किस धरती ने जन्म दिया है आख़िर?

क्या इसी धरती ने ?
फिर यह धरती हमारी कहाँ रही?
हम किस धरती को अपनी कहकर पुकारें?

हमें जन्म देने वाली
हमारी धरती कहाँ है इस धरती के भीतर?
इसी सवाल में तब्दील होता जा रहा हूँ मैं
उन तमाम लोगों की तरह
जो इसी सवाल में तब्दील होते जा रहे हैं |

'''रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली
</poem>