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एक दुनिया समानांतर / शलभ श्रीराम सिंह
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14:52, 20 दिसम्बर 2009
एक दुनिया है सपनो की
बेरौनक और बदरंग।
'''रचनाकाल : 1991, नई दिल्ली
</poem>
गंगाराम
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