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02:51, 22 दिसम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिलोचन
}}<poem>अर्जुन का वृक्ष नर नारी का मित्र है। शुद्ध
रखता है वायुमंड़ल को। वैद्य इस का महत्व जानते
हैं।
इसे खोजा करते हैं। इस के पंचांग का उपयोग
किया जाता है नाना औषधियों में।
इस की छाल को सुखा कर चूरन बना कर लोग
रखते हैं और चाय के समान इस का व्यवहार
करते हैं। चाय में जो दोष पाए जाते हैं,
वह अर्जुन में नहीं होते।
अर्जुन का वृक्ष प्रदूषण का निवारण करता
है। इस की हरी पत्तियाँ प्राय: छिद्रिल होती हैं।
ये छिद्र उन कृमियों के बनाए हैं जिन से इन
का भोजन का काम चलता है। अर्जुन से अरिष्ट
भी बनाते हैं। उस का उपयोग अनुभवी लोग जानते हैं।
कस्बों की हवा को शुद्ध रखने के लिए
अब अर्जुन के वृक्ष लगाने का कार्य चलाया
जा रहा है। बस, अर्जुन को जितना सम्मान
मिलना चाहिये उतना मिल नहीं रहा।
2.03.2003 </poem>