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[[Category:बाल-कविताएँ]]
<poem>
एक बार की बात, चंद्रमा बोला अपनी माँ से
"कुर्ता एक नाप का मेरी, माँ मुझको सिलवा दे
नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता."
माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
चूमकर मुखड़ा
हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला<br>सिलवा दो मा मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला<br>सन सन चलती हवा रात भर जाड़े से मरता "बेटा खूब समझती हूँ<br>मैं तेरा सारा दुखड़ाठिठुर ठिठुर कर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूँ<br>आसमान का सफर और यह मौसम है जाड़े का<br>न हो अगर लेकिन तू तो ला दो कुर्ता ही को भाड़े का<br>बच्चे की सुन बात, कहा माता ने 'अरे सलोने`<br>कुशल करे भगवान, लगे मत तुझको जादू टोने<br>जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ<br>एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ<br>रहता हैपूरा कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा<br>बड़ा किसी दिन हो जाता आधा, बिलकुल न कभी दिखता है, और किसी दिन छोटा<br>"घटता-बढ़ता रोज, किसी "आहा माँ ! फिर तो हर दिन ऐसा भी करता है<br>की मेरी नाप लिवा दे एक नहीं किसी की भी आँखों को दिखलाई पड़ता है<br>पूरे पंद्रह तू कुर्ते मुझे सिला दे."अब तू ही ये बता, नाप तेरी किस रोज लिवायें<br/poem>सी दे एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आये!