Changes

|रचनाकार=गँग
}}
{{KKCatKavita}}[[Category:पदसवैया]]<poeM>मृगनैनी की पीठ पै बेनी लसै, सुख साज सनेह समोइ रही।
सुचि चीकनी चारु चुभी चित में, भरि भौन भरी खुसबोई रही॥
कवि 'गंग’ जू या उपमा जो कियो, लखि सूरति या स्रुति गोइ रही।
मनो कंचन के कदली दल पै, अति साँवरी साँपिन सोइ रही॥
</poeM>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits