--[[सदस्य:Shrddha|Shrddha]] ०२:०५, २१ नवम्बर २००९ (UTC)
आदरणीय जनविजय जी! मैं रचनाएँ मूल पुस्तकों से देख 'रंजना भाटिया' जी को असुरक्षित कर स्वयं ही टंकित करता हूँ। अगर मुझे पन्ने सुरक्षित दीजिए, कुछ बदलाव करने का अधिकार दे दिया जाय तो मैं साथ के साथ पन्ने सुरक्षित भी करता चलूँ।अगर दूसरा कोई यह काम करेगा तो सबसे पहले उसे वो कविता ढूँढनी होगी फिर मूल श्रोत से मिलाना पड़ेगा जिसमें बहुत समय नष्ट होगा। हैं। सादर - [[धर्मेन्द्र कुमार सिंह]]