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|रचनाकार=सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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{{KKCatKavita}}{{KKCatGhazal}}<poem>अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है<br>कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है<br><br>
जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,<br>नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है<br><br>
होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त<br>द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है<br><br>
शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा<br>कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है<br><br>
देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,<br>फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है<br><br>
हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में<br>रास्ता है कि कहीं और चला जाता है<br><br>
दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की<br>आप ही रोता है औ आप ही समझाता है । <br><br/poem>
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