Changes

उपरान्त जीवन / कुंवर नारायण

113 bytes removed, 10:22, 26 दिसम्बर 2009
|संग्रह=वाजश्रवा के बहाने / कुंवर नारायण
}}
{{KKCatKavita}}<poem>मृत्यु इस पृथ्वी पर<br>जीव का अंतिम वक्तव्य नहीं है<br><br>
किसी अन्य मिथक में प्रवेश करती<br>स्मृतियों अनुमानों और प्रमाणों का<br>लेखागार हैं हमारे जीवाश्म।<br><br>
परलोक इसी दुनिया का मामला है।<br><br>
जो सब पीछे छूट जाता<br>उसी सबका<br>उसी माला से किंवदन्ती-पाठ।<br><br>
एक अथक कथावाचक है समय<br>ढीठ उपदेशक है कालचक्र<br>दुहराता पिछले पाठ<br>लिखता कुछ नए पृष्ठ<br>जीवन का महाग्रंथ<br>एक संकलन के प्रारूप में नत्थी<br>पिता-पुत्र दृष्टान्त की<br>असंख्य चित्रावलियां।<br><br>
एक सच्चा पश्चाताप--एक प्रायश्चित<br>एक हार्दिक क्षमायाचना से भी<br>परिशुद्ध की जा सकती है<br>भूलचूक की पिछली जमीन,<br>एक वापसी के सौभाग्य से भी<br>मनाया जा सकता है<br>एक नए संवत्सर का शु्भ पर्व,<br><br>
एक सुलह की शपथ<br>हो सकती है पर्याप्त संजीवनी<br>कि आंखें मलते हुए उठ बैठे<br>एक नया जीवन-संकल्प<br>और लिपट जाए गले से<br>एक दुर्लभ अपनत्व की पुन:प्राप्ति<br><br>
यहां से भी शुरू हो सकता है<br>एक उपरान्त जीवन--<br>पूर्णाहुति के बिल्कुल समीप<br>बची रह गयी<br>किंचित् श्लोक बराबर जगह में भी<br>पढ़ा जा सकता है<br>एक जीवन-संदेश<br>कि समय हमें कुछ भी<br>अपने साथ ले जाने की अनुमति नहीं देता,<br>पर अपने बाद<br>अमूल्य कुछ छोड़ जाने का<br>
पूरा अवसर देता है।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits