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कोई आकर पूछे / मोहन राणा

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|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा
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रुके और पहचान ले
 
अरे तुम
 
जैसे बस पलक झपकी
 
कि रुक गया समय भी
 
कुछ अधूरा दिख गया
 
और याद करते
 
कुछ अधूरा छूट गया
 
फिर से
 
चलत-चलते
   '''रचनाकाल: 1.8.2005</poem>
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