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आज ही होगा / बालकृष्ण राव

19 bytes removed, 13:59, 26 दिसम्बर 2009
<poem>
मनाना चाहता है आज ही ?
 
-तो मान ले
 
त्यौहार का दिन आज ही होगा !
उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठती,
 
न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन ;
 
खुले से लग रहे हैं द्वार मंदिर के .
 
बढ़ा पग-
 
मूर्ति के श्रींगार का दिन आज ही होगा !
न जाने आज क्योँ दिल चाहता है-
 
स्वर मिला कर
 
अनसुने स्वर में किसी की कर उठे जयकार!
 
न जाने क्यूँ
 
बिना पाए हुए भी दान याचक मन ,
 
विकल है वयक्त करने के लिए आभार !
कोई तो,कंही तो 
प्रेरणा का श्रोत होगा ही-
 
उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठती ,
 
नदी में बाढ़ आई है कंही पानी गिरा होगा !
अचानक सिथिल-बंधन हो रहा है आज
 
मोक्ष्सान बंदी मन -
 
किसी की तो कंही कोई भगीरथ -साधना पूरी हुई होगी,
 
किसी भागीरथी के भूमि पर अवतार का दी आज ही होगा !
मनाना चाहता है आज ही ?
 
-तो मान ले
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