{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी}}{{KKCatKavita}}<poem>ऐसा लगता है,जैसे हम,<br>पत्थर युग की ओर<br>धीरे-धीरे सरक रहे हैं।<br>अच्छा है अगर,<br>सब पत्थर बन जाएं,<br>कम से कम<br>ऊंच-नीच की खाई तो<br>पट जाएगी,<br>और भावनाएं इस तरह,<br>लहूलुहान तो नहीं होंगी।<br><br/poem>