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 {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}{{KKCatKavita}}<poem>कतारों में बने लकड़ी के घर,<br>रंग-रोगन की खूबसूरती<br>सुविधाएं एवं ऐशो आराम,<br>मशीनें करती हैं ज्यादा काम,<br>बगीचे मे लगे पेड़ -पौधे,<br>रंग बिरंगे फूलों से आच्छादित घर,<br>हरी-हरी घास जैसे मखमल का गलीचा<br>मन को सहज ही मोह लेता है,<br>
जैसे कहता हो-<b>
देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ,<br>तुम भी हँसो,<br>उदासी के लिए यहाँ जगह नहीं है।<br>अकेले ही रहकर जीना सीखो,<br>यहाँ आत्मीयता और संवेदना का,<br>कोई मूल्य नहीं?<br>यहाँ सब कुछ है,<br>पर मानवता नहीं,<br>आप तड़पेंगे ,रोयेंगे,<br>सर पीट-पीट कर चिलायेंगे<br>,फिर भी आपके पड़ोसी को,<br>सुनाई नहीं पड़ेगा ।<br>क्योंकि यहाँ लोगों के,<br>कान नहीं होते,<br>मदद के नाम पर,<br>पुलिस आयेगी,पड़ोसी नहीं<br>इंसानियत क्या है?<br>वे समझते नहीं <br> कितना है ज़ज़्बातों का अभाव यहाँ?<br>कितना है बनावटीपन यहाँ?<br>अपने देश में हम लड़ते हैं,झगड़्ते हैं,<br>वक़्त पड़ने पर हम-<br>दूसरों के साथ रोते हैं,हँसते है,<br>मदद करने के लिए तड़पते हैं,<br>यही आत्मीयता और स्नेह तो,<br>मेरे देश की खासियत है,<br>जिसके लिए -<br>मैं विदेश में तड़पती हूँ ।<br/poem>
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