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विदेश में तड़पती हूँ / रमा द्विवेदी
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16:48, 26 दिसम्बर 2009
हरी-हरी घास जैसे मखमल का गलीचा
मन को सहज ही मोह लेता है,
जैसे कहता हो-
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देखो,मैं अकेला ही हँस रहा हूँ,
तुम भी हँसो,
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