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<poem>
हमें परजीवी लता नहीं बनना है
जड़-जमीन हीन,अस्तित्व विहीन,
दी्न-हीनता को तजना है,
हमें परजीवी लता नही बनना है।
हमें परजीवी लता नहीं बनना है<br>जड़-जमीन हीन,अस्तित्व विहीन,<br>दी्न-हीनता को तजना है,<br>हमें परजीवी लता नही बनना है।<br><br>न रहो कभी किसी की आश्रिता,<br>खुद बनकर स्वावलंबी बनो हर्षिता,<br>हमें खुद अपना संबल बनना है ।<br>हमें परजीवी लता नहीं बनना है ॥<br><br>  न करे हमारा कोई शोषण-कुपोषण,<br>सावधान रहना है हमको हरदम,<br>हमें अपनी रक्षा खुद करना है।<br>हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥<br><br>  पराश्रिता का न होता कोई सम्मान,<br>जो भी चाहे करते हैं उसका अपमान,<br>ऐसे जीवन को हमें बदलना है।<br>हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥<br><br>  हर खुशी हमारी थाती है,<br>हम हरदम मुस्काती- गाती हैं,<br>हर मधुमास हमारा अपना है।<br>हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥<br><br>  यह राह बड़ी है पथरीली,<br>हरदम पलकें होतीं गीली,<br>हर कदम पे हमें संभलना है।<br>हमें परजीवी लता नहीं बनना है॥ <br><br/poem>
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