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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमा द्विवेदी}}{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है? सारे जहां में हो रही रुसवाई है।
’सारे जहां से अच्छा’ गाते रहे हैं हम
अतीत के गौरव को मिट्टी में मिलाई है
न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?
न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br>सारे जहां में हो रही रुसवाई है।<br><br>’सारे जहां से अच्छा’ गाते रहे हैं हम<br>अतीत के गौरव को मिट्टी में मिलाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>लूटमार,बलात्कार रोज बढ़ रहे हैं<br>कानून भी अपराधी को सज़ा दे न पाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है।<br><br>  दल बदल रहे हैं कुर्सी के वास्ते सब<br>निज स्वार्थ के लिए सब लड़ रहे लड़ाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  जाने कहां गए वे जो वतन पे जान देते थे<br>आज तो पद के लिए हो रही आपाधाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  गैरों के ज़ुल्म सहते, शिकवा न था किसी से<br>अपनों के ज़ुल्म देखकर, रूह थर्राई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  अंधेरों से उजालों में खतरे का डर है ज्यादा<br>मंदिरों में भी ज़िन्दगी खून से नहाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  दहेज वास्ते बहुएं सताई जाती हैं<br>अपनों के द्वारा ही नारी गई जलाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  नारी पे ज़ुल्म करके, मर्दानगी दिखाते<br>किस धर्म ने यह क्रूरता सिखाई है?<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  आज़ाद देश में नारी पे ज़ुल्म होते क्यों?<br>हमारे देश की यह कौन सी बड़ाई है?<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  गुजरात और कश्मीर में लाशें पटी हुई हैं<br>खुदा बचाओ अब जान पर बन आई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है?<br><br>  चारो तरफ है दहशत, सुरक्षित नहीं कहीं?<br>हत्यायें देख-देख ज़िन्दगी खुद पे लजाई है<br>न जाने कैसी आज़ादी हमने पाई है? <br><br/poem>
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