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आहटें आसपास (कविता) / पंकज सिंह

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कितनी छायाएँ कितने हथियार चीखें कितनी
 
कितनी रोटियाँ कितना नून
 
कितने अदृश्य अपराध
 
सबकुछ धो डालती-सी बारिशें
 
फिर कितना अंधड़ कितनी लू
 
कितना यह संचय सब
 
सदियों से कितनी व्यथाएँ हाथ बांधे
 
कितना बड़ा होने का इतिहास
 
सुनो
 
कितनी-कितनी
 
आहटें
 
कितनी कितनी आहटें
 
आसपास
 
(रचनाकाल:1980)
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