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|संग्रह=ईश्वर एक लाठी है / स्वप्निल श्रीवास्तव
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मैं अपने आंगन में
 
गुलाब के पौधे की जगह रोपूंगा कपास की बेल
 
उसकी टहनियों और पत्तों से
 
जी भरकर प्यार करूंगा
 
गुलाब की गंध शिथिल कर देती है आदमी को
 
गुलाब का नहीं होता कोई भविष्य
 
डाल से अलग होने के बाद
 
कपास के फूल जब खिलते हैं
 
तो उसकी सफ़ेदी के सामने फक पड़ जाते हैं
 
फूलों के बग़ीचे
 
नन्हे-नन्हे अनुभवी हाथ
 
चुनते हैं कपास के फूल
 
उन्हें भेजते हैं दादी के चरखे तथा कारख़ानों में
 
वस्त्र बुनने के लिए
 
वस्त्र नंगे तन ढँकते हैं
 
रजाई और बिछौनों में जाकर
 
ज़िन्दा होने लगते हैं कपास के फूल
 
वे दंदाते हैं जाड़े की बर्फ़ीली ठंड में
 
वे कहीं भी हों किसी भी शक्ल में
 
माँ की ममता की तरह शाश्वत
 
तथा स्पर्श की तरह मुलायम होते हैं
 
जब तक वे रहते हैं मनुष्य के पास
 
ठंड से उसकी रक्षा करते हैं
 
मैं अपने बच्चों को विरासत में दूंगा कपास के फूल
 
और गुलाबों के फूलों से नफ़रत करना सिखाऊँगा
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