|संग्रह=नियति,इतिहास और जरायु / श्रीनिवास श्रीकांत
}}
{{KKCatKavita}}<poem>शहर
बर्फ़
और देवदार
और कस्तूरे भी
भुने मांस,शराब और कहकहों के
:::::बीच
अबके मगर जल रहा
दफ़्न हुए इस शहर को
जिसकी फ़िज़ाओं में कैद हैं
:::::अब भी
मृत किलकारियां
दुम हिलाते कुत्तों की बारातें
सरकती है ज़मेन
गुज़रता है ज़हन की पेचीदगी से
:::::दिन
दफ़्तर
और कहवों के बीचा
अपने को दोहराता है
:::::समय
बच्चे नहीं करते
इंतज़ार
</poem>