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समूहगान / शैलेन्द्र

30 bytes added, 04:54, 29 दिसम्बर 2009
|रचनाकार=शैलेन्द्र
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क्रान्ति के लिए जली मशाल
 
क्रान्ति के लिए उठे क़दम !
 
भूख के विरुद्ध भात के लिए
 
रात के विरुद्ध प्रात के लिए
 
मेहनती ग़रीब जाति के लिए
 
हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !
 
छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ
 
बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ
 
किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ
 
लूट का यह राज हो ख़तम !
 
तय है जय मजूर की, किसान की
 
देश की, जहान की, अवाम की
 
ख़ून से रंगे हुए निशान की
 
लिख रही है मार्क्स की क़लम !
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