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उस दिन / शैलेन्द्र

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|रचनाकार=शैलेन्द्र
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[[Category:गीत]]{{KKCatKavita}}{{KKCatGeet}}<poem>
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
साध हो चुकी पूरी !
 
जिस दिन तुमने सरल स्नेह भर
 
मेरी ओर निहारा;
 
विहंस बहा दी तपते मरुथल में
 
चंचल रस धारा!
 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
साध हो चुकी पूरी!
 
जिस दिन अरुण अधरों से
 
तुमने हरी व्यथाएं;
 
कर दीं प्रीत-गीत में परिणित
 
मेरी करुण कथाएं!
 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
साध हो चुकी पूरी!
 
जिस दिन तुमने बाहों में भर
 
तन का ताप मिटाया;
 
प्राण कर दिए पुण्य--
 
सफल कर दी मिट्टी की काया!
 
उस दिन ही प्रिय जनम-जनम की
 
साध हो चुकी पूरी!
  '''1945 में रचित</poem>
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